भारत रंग महोत्सव : जिंदगी के कुछ ख्‍वाब, चंद उम्मीदें 'द ओल्ड मैन'

उम्मीद एक ऐसा मानवीय भाव है जो सघन विषमताओं में भी संघर्षरत रहने के लिए ऊर्जा देता है. लोग, परिस्थितियां और उम्र भले आपके खिलाफ हों, पर  एक महीन-सी जिजीविषा इन सब को भेदकर जिंदगी की खुशनुमा रौशनी तक पहुंच जाती है. मशहूर साहित्यकार अर्नेस्ट हेमिंग्वे (Ernest Hemingway) का उपन्यास- 'द ओल्ड मैन एंड द सी' (The Old Man and the Sea) इसी जिजीविषा और उम्मीद की कहानी कहता है. हेमिंग्वे की लेखनी को आलोचक 'आइसबर्ग' शैली कहते थे. बर्फ का वह टुकड़ा जो ऊपर से सपाट, चिकना और सख्त हो, लेकिन भीतर से पानी का एक बड़ा जखीरा समेटे हुए हो. हेमिंग्वे की कहानी, घटनाएं और विचार, ऊपरी सतह पर जितने सरल, सीधे और भोले नजर आते हैं, भीतरी सतह पर उनके अन्तर्निहित अर्थ बहुत गहरे और विस्तार लिए हुए होते हैं.

युवा निर्देशक, डिजाइनर और अभिनेता, शाहिदुल हक ने हेमिंग्वे के इसी क्लासिक उपन्यास को एक देसी असमिया कलेवर के रूप में प्रस्तुत किया. जिसका मंचन अभी हाल ही में संपन्न हुए 21वें भारत रंग महोत्सव (Bharat Rang Mahotsav) के अभिमंच सभागार में हुआ. कहानी एक बूढ़े मछुआरे बोदई की है, जो पिछले 84 दिनों से एक भी मछली नहीं पकड़ पाया है. आस-पास के लोग उसे मनहूस और अभिशप्त मानने लगे हैं. उसका एकमात्र युवा साथी रोंगमोन भी अपने मां-बाप के दबाव में आकर बोदई के साथ अब मछली पकड़ने नहीं जाता, पर उसका स्नेह बोदई के लिए बरकरार है. वह रोज रात को उसके लिए खाना ले कर आता है और दिन भर की उसकी कहानियों को सुनता है. पीढ़ियों के बीच बदलते विचार, मूल्य और जीवन जीने के सलीके में आए बदलाव के चित्रण की भी कहानी है 'द ओल्ड मैन.' अपने अकेलेपन का एहसास होते हुए भी बूढ़ा मछुआरा बोदई अपनी बची-खुची जिंदगी अपनी शर्तों, अपने  तरीकों और पुराने ढर्रे पर ही जीना चाहता है.

हेमिंग्वे की कहानी में नहीं है बिल्ली 
जब कोई कलाकार अपनी कहानी, बिंब या घटनाएं अपने जीवन और उसके आस-पास घटित होते परिवेश में से लेता है, तो उसके कथ्य में एक तरह की निश्छलता और अबोधता नजर आती है. यही वजह है कि नाटक के निर्देशक शाहिदुल हेमिंग्वे की कहानी में अपनी स्थानीयता खोज लेते हैं. इसके अलावा कहानी में वह कुछ ऐसी चीजों को भी जोड़ देते हैं, जिससे हेमिंग्वे उनकी मिट्टी के और करीब आ जाते हैं. जैसे किबिल्ली. शाहिदुल कहते हैं कि 'बिल्ली हेमिंग्वे की कहानी में नहीं है, लेकिन उम्मीद तलाशते बोदई मेरी कहानी का अहम हिस्सा है. हमारे यहां मछुआरों के घर में बिल्ली बहुत आम है, जो बड़े चाव से मछली के कांटे को खाती है. कहानी में जब बोदई कई दिनों तक मछली पकड़ने में नाकाम रहता है, तो उसके घर पर रोज आने वाली बिल्ली भी उसके यहां आना बंद कर देती है. अब वह पड़ोस के घरों में जाने लगती है. बोदई इसमें भी उम्मीद यह कहकर ढूंढ लेता है कि जब उसका अच्छा समय लौटेगा, तो बिल्ली भी उसके घर वापस लौटेगी.